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स्पोर्ट्स सेक्टर में निजी क्षेत्र की भागीदारी

अर्थ विमर्श
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आजकल चारो ओर आईपीएल की धूम मची हुई है. बेहद बड़े स्तर पर क्रिकेट के आयोजन ने इसे वाकई ग्लोबल बना डाला है. पहले जिन देशों में क्रिकेट नहीं खेला जाता था वहॉ  विश्व कप के आयोजन से भी कोई हलचल नहीं दिखती थी किंतु अब  स्थिति में काफी फर्क आ चुका है. अब उन देशों में भी इसे महत्व मिलने लगा है जिनका दूर-दूर तक क्रिकेट  से कोई नाता नहीं रहा. यह परिवर्तन निजी क्षेत्र की भागीदारी के कारण संभव हो सका है.

अभी आईपीएल सीजन फोर के लिए दो अन्य टीमों की नीलामी हुई जिसमें सहारा ने चेन्नई में इंडियन प्रीमियर लीग की बोली में ट्वेंटी-20 टूर्नामेंट के लिए पुणे की फ्रेंचाइजी जबकि रोंदिवू स्पोटर्स वर्ल्ड लिमिटेड ने कोच्चि की फ्रेंचाइजी हासिल की. यह दोनों टीमें 3235 करोड़ रुपए में बिकीं. यह तथ्य संकेत करता है कि अब समय आ गया है जबकि सभी खेलों  के उत्थान के लिए निजी भागीदारी को बढ़ाया जाए ताकि खेल क्षेत्रक अर्थव्यवस्था के लिए भी एक लाभकारी क्षेत्र साबित हो सके.

Sportsक्रिकेट को लेकर जैसा उत्साह प्राइवेट प्लेयर्स दिखा रहे हैं वह स्वागत योग्य है. इससे ना केवल रोजगार और अन्य आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोत्तरी हो रही है बल्कि ऐसे एक नए परिदृश्य की भूमिका तैयार हुई है जिससे खेल अब केवल खेल नहीं रहा वरन उसकी भूमिका में विस्तार हो रहा है. यानी खेल अब आर्थिक क्षेत्रक का एक महत्वपूर्ण भाग होने की तैयारी में है.

भारत में गत कुछ वर्षों से स्पोर्ट्स की भूमिका में जो बदलाव देखने में आ रहा है उसे खारिज नहीं किया जा सकता है किंतु यह परिवर्तन केवल क्रिकेट के लिए ही हो सका है जो सचमुच चिंताजनक है. यही उत्साह अन्य खेलों के लिए भी होना चाहिए ताकि एक ओर उन खेलों में लोगों की रुचि बढ़े साथ ही स्पोर्ट सेक्टर इकानॉमी में उल्लेखनीय भूमिका निभा सके.

स्पोर्ट्स की विभिन्न सहयोगी गतिविधियों जैसे कि स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रशिक्षण, स्पोर्ट्स रिलेटेड सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, टैलेंट मैनेजमेंट आदि के लिए प्राइवेट सेक्टर का योगदान अपेक्षित है ताकि इसके द्वारा खेल के क्षेत्र में सुविधाओं का विकास हो सके और दूरदराज के ऐसे युवाओं को भी आकर्षित किया जा सके जो अभी तक प्रतिभा होते हुए भी खेल को कॅरियर बनाने से बचते हैं या जिन्हें कोई रिस्पॉंस नहीं मिल पाता है.

स्पोर्ट्स सेक्टर में निजी भागीदारी में वृद्धि करने के लिए सरकारी स्तर पर भी कोशिश शुरू की जानी चाहिए. इसके लिए सरकार को ऐसे पॉलिसी निर्मित करनी होगी जिससे निजी क्षेत्रक को प्रोत्साहन मिल सके और वह इस दिशा में पूंजी लगाने को तैयार हो जाए. जैसे स्पेशल इकानॉमिक जोन के लिए सरकार ने विविध प्रोत्साहन और कर छूट उपायों के जरिए निजी क्षेत्र के उद्यमियों को आकर्षित करने का प्रयास किया है.

निजी क्षेत्र खेलों के विकास में बहुमुखी भूमिका निभा सके इसके लिए सरकारी गाइड लाइन तय किया जाना जरूरी है. इससे एक ओर तो सरकारी राजस्व के लिए रास्ता तैयार होगा वहीं दूसरी ओर खेलों का स्तर भी ऊंचा उठेगा.

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