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शेयर बाजार की चाल

अर्थ विमर्श
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यह विचित्र है कि जब शेयर बाजार का संवेदी सूचकांक 20 माह के शिखर के करीब है तब छोटे निवेशकों के एक बहुत बड़े वर्ग के हौसले पस्त नजर आ रहे हैं। बड़ी कंपनियों के शेयरों में भारी उछाल से विदेशी निवेशक संस्थानों, शेयर ब्रोकरों, म्युचुअल फंडों और सटोरियों ने खूब चांदी कूटी, पर अक्सर छोटी कंपनियों के शेयरों में निवेश करने वाले अधिकतर आम निवेशक इस बूम में हाथ मलते रह गए। जाहिर है कि इन दोनों वर्गो की शेयर रणनीति में बुनियादी फर्क है, जिसके चलते यह पीड़ादायी स्थिति हर बार की तेजी में पैदा होती है। बड़े निवेशक मंदी में अक्सर चुपचाप खरीदारी करते है और तेजी के दौरान धीरे-धीरे बिक्री कर सारा माल निकाल देते है, जबकि छोटे निवेशक मंदी में घबराकर अपने शेयर बेचते है और तेजी में हड़बड़ी दिखाकर खरीदारी कर फंस जाते है। इसलिए, यह बेहद जरूरी है कि अपने खून-पसीने की कमाई शेयरों में निवेश करने वाले छोटे निवेशक न सिर्फ पिछली गलतियों से सबक सीखें, बल्कि शेयर बाजार के मिजाज, कंपनियों के कार्य-प्रदर्शन, शेयर ब्रोकरों, मैनेजमेंट-ब्रोकरों की गिरोहबंदी के जाल को भी समझें।


शेयर बाजार में सट्टेबाजी के कारण कई शेयर कुछ दिनों-महीनों में अत्यधिक बढ़ जाते है, जबकि कुछ गिर जाते है। यह खेल लगभग निरंतर चलता रहता है। स्पष्ट है कि इस बढ़त-घटत के पीछे संबंधित कंपनियों का अच्छा या खराब कार्य-प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि ‘सटोरिया खेल’ होता है, जिसमें बड़े ब्रोकर और कंपनी मैनेजमेंट की साठगांठ भी होती है। जब शेयर बाजार बहुत ऊंचाई पर होता है तो आम निवेशकों को किन्हीं कंपनियों के शेयर खरीदने के बारे में ललचाने के लिए प्रचार-दुष्प्रचार किया जाता है। कंपनियों की संभावित स्थिति के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर तारीफों के पुल बांधे जाते है। ब्रोकर और स्वयंभू शेयर विश्लेषक खरीद-फरोख्त के बारे में टिप्स देते है। मोबाइल के बढ़ते प्रचलन के साथ एसएमएस के जरिए ऐसी टिप्स का चलन बहुत बढ़ा है और बिना मांगे भी टिप्स दी जा रही है।


इस बाजार में वही निवेशक जीत सकता है जो भारी गिरावट के दौरान शेयरों की खरीदारी करे और चढ़ते बाजार में बिक्री कर मुनाफावसूली कर ले, लेकिन इसकी भी चार बुनियादी शर्ते है। पहली शर्त यह है कि निवेश दीर्घकालिक अवधि के लिए हो यानी उतनी राशि ही लगाई जाए, जिसकी लंबी अवधि तक घरेलू या अन्य आकस्मिक खर्चो के लिए जरूरत न पड़े। दूसरी शर्त, मजबूत फंडामेंटल्स वाली कंपनियों में निवेश किया जाना चाहिए। यानी ये कंपनियां अपने व्यवसाय में सुस्थापित एवं अग्रणी हों और उनके मैनेजमेंट की अच्छी साख हो। तीसरी शर्त, निवेशकों को अर्थव्यवस्था की गति एवं दिशा के साथ-साथ कंपनियों के कारोबार एवं लाभप्रदता पर लगातार नजर रखनी चाहिए। अक्सर देखा गया है कि आम निवेशक इनसे वाकिफ नहीं रहते और गलत समय पर खरीदारी या बिक्री की भूल कर बैठते है और नुकसान उठाते है। मसलन, डालर या यूरो के मुकाबले रुपये के अवमूल्यन की स्थिति में आईटी कंपनियों और अन्य निर्यातक कंपनियों की लाभप्रदता बढ़ती है। इसके विपरीत रुपया मजबूत होने पर उनके कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसलिए कंपनियों के कारोबार की बारीकियों की बुनियादी समझ विकसित करना जरूरी है। चौथी शर्त, निवेश में अच्छा-खासा मुनाफा होते ही मुनाफावसूली की जानी चाहिए, भले ही इसे किश्तों में शेयर बेचकर किया जाए।

इसी के साथ अहम बात यह है कि मांग बढ़ने से जिन उद्योगों की प्रगति की अधिकाधिक संभावना है, उन पर लगातार नजर रखते हुए उनसे संबंधित सुस्थापित एवं बड़े पैमाने पर कारोबार करने वाली कंपनियों में निवेश करने से अधिक लाभ मिल सकता है। हाल के समय का उदाहरण लें तो टेलीकॉम सेक्टर में अनेक कंपनियों के आने और व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ इनसे जुड़ी कंपनियों के शेयर काफी दबाव में आ गए और उनके भाव पर ब्रेक-सा लगा है। कुछ साल पहले नए सितारों में आईटी कंपनियां शामिल हुई और निवेशकों की चहेती बनीं। कमजोर मांग और ब्याज दरों में वृद्धि से रिएलिटी कंपनियों के शेयर बहुत नीचे आ गए। अतएव, अर्थव्यवस्था और कारोबार, दोनों की वर्तमान और भावी स्थिति का आकलन जरूरी है, वरना बगैर सोचे-समझे निवेश करना भारी घाटे का सबब बन सकता है।

Source: Jagran Yahoo

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