Menu
blogid : 318 postid : 113

अच्छी नहीं लगती अच्छी छवि

अर्थ विमर्श
अर्थ विमर्श
  • 173 Posts
  • 129 Comments

Indiaसामाजिक विचार और मानवीय मूल्य किसी भी देश की पूंजी होती है. मानवीय मूल्यों को अपनाकर हम एक बेहतर समाज की परिकल्पना करते हैं. लेकिन केवल परिकल्पना मात्र से ही ध्येय प्राप्त नहीं होता उसके लिए हमें आगे बढ़कर कार्य करने पड़ते हैं.

आज आर्थिक क्षेत्र में हमारी गिनती दुनिया के शक्तिशाली देशों में की जाती है लेकिन इसके बाद भी हम एक विकासशील देश हैं. भारत में वैसे तो अनेक समस्याएं विद्यमान हैं. बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, आदि कुछ ऐसी ही समस्याएं हैं लेकिन इन सब में सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार की है जो हमारे देश के बहुमुखी विकास को बाधित कर रहा है.

आज भ्रष्टाचार ने अपने पैर इतने पसार लिए हैं कि यह सिर्फ शासकीय कार्यालयों में लेने-देने वाला घूस नहीं रह गया है बल्कि निज़ी व्यापार क्षेत्र भी इससे ग्रसित हो गए हैं. हाल ही में सामने आया 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला भ्रष्टाचार के बढ़ते हुए कदम की सूचना देता है.

Raja भारत के प्रतिष्ठित उद्योगपति राहुल बजाज का भी यही मानना है कि आज बड़ी-बड़ी व्यावसायिक कंपनियां रिश्वत देकर काम करवा रही हैं. अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे निकलने की होड़ में लगी इन कंपनियों को रिश्वत देकर काम कराने की लत लग गई है. ‘पैसा फेंक तमाशा देख’ इनका वचन और पहले से ही भ्रष्ट नेताओं को चारा जितना व्यापार क्षेत्र से आता है वह शायद कहीं और से आता हो. तभी तो हमारे नेता आज छोटा-मोटा घोटाला नहीं करते हैं बल्कि काफी बड़ा कांड कर जाते हैं.

रणनीति प्रबंधन गुरु स्वर्गीय सी के प्रहलाद ने एक समय कहा था कि आज के युग में कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी(सीएसआर) समाज, कंपनी और देश को जोड़ने की एक डोर है. सम्पूर्ण विश्व के देशों में भारत सीएसआर का सबसे अच्छा उदाहरण है और अगर हम किसी एक कंपनी की बात करें तो टाटा सबसे आगे खड़े होते हैं. परन्तु शायद प्रहलाद जी यह भूल गए थे कि हम भारतीयों को अपनी बड़ाई अच्छी नहीं लगती. तभी शायद अपनी अच्छी छवि को धूमिल करने के लिए हमारे नेताओं ने स्पेक्ट्रम घोटाला और आदर्श बिल्डिंग घोटाला किया.

CSRदेश के विकास की भागदौड़ जितनी नेता और व्यवसायियों के कंधों पर होती है शायद उतना हाथ किसी का होता हो. नेता जहां देश चलाते हैं वहीं व्यवसायी देश को आगे बढ़ाते हैं. लेकिन अगर दोनों ही नेता और व्यवसायी भ्रष्ट हों तो देश का कभी भला नहीं हो सकता है. ऐसे में हम कह सकते हैं कि अब समय आ गया है कि व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन किया जाए. अगर कोई अच्छा करता है तो उसे हमें श्रेय देना चाहिए लेकिन अगर कोई गलती करे तो उसे उसके लिए जवाबदेह होना होगा. ऐसे में हमें यह भी देखना होगा कि हमारी कानून व्यवस्था निष्पक्षता से कार्य करे क्योंकि लोकतंत्र में सभी बराबर होते हैं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh