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आरबीआई भरा बैंक खाली

अर्थ विमर्श
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rbi-bankआजकल भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर डी. सुब्बाराव कुछ परेशान दिख रहे हैं. उनकी परेशानी की वजह रिजर्व बैंक के पास पैसे की कमी नहीं है बल्कि आजकल रिजर्व बैंक पैसे से लबालब भरा पड़ा है. वहीं दूसरी तरफ अन्य बैंक नकदी की तंगी से जूझ रहे हैं.

बैंकिंग प्रणाली के तहत अगर बैंकों के पास पैसा होता है तो बैंक अपने उधार दरों में कटौती करके कम दामों में लोगों को पैसा लोन में देते हैं और व्यक्ति का वही पैसा घर, ज़मीन और अन्य उत्पादों को खरीदने में खर्च होता है जिससे उत्पादों की मांग बनी रहती है और अर्थव्यवस्था सुचारू ढंग से चलती रहती है. लेकिन नकदी के दवाब में बैंक अपनी ऋण दरें बढ़ाए रखते हैं जिससे उत्पादों की मांग में कमी आती है और महंगाई बढ़ती है. महंगाई अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐसा दीमक है जो पूरी अर्थव्यवस्था को अंदर-अंदर चूस जाती है.

अभी भारत में भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई है जहां आरबीआई के पास पैसा ही पैसा है जबकि दूसरी ओर बैंक खाली पड़े हैं. 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से सरकार को उम्मीद से कहीं अधिक धन मिला है. सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश और अप्रत्यक्ष करों से भी करोड़ों रुपए सरकारी खजाने में पहुंचे हैं. इसके अलावा देश का औद्योगिक उत्पादन अक्टूबर माह में बढ़कर 10.8 फीसदी पर पहुंच गया है. लिहाजा सरकार नकदी के इस दबाव को दूर करने के लिए खर्च बढ़ाना चाहती है.

मौजूदा समय में सरकारी खजाने में 92 हजार करोड़ रुपए की नकदी है. जो एक तरफ़ से फंसी पड़ी है. इसका मुख्य कारण कर्ज की दरों में उठाव है जिससे बैंकों को ना चाहते हुए भी अधिक दामों पर कर्ज देना पड़ रहा है और वह बाहर से ज्यादा पूंजी उठा रहे हैं.

ऐसी स्थिति में ज़रुरी हो जाता है कि आरबीआई अपने बैंक दरों और रेपो रेट में कमी लाए जिससे निज़ी बैंक बाहर से पैसा उठाने की बजाय आरबीआई से पैसा कम दामों में उठाएं.

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