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उम्मीदों के शहर श्रेणी वाले शहरों में औसत त्रैमासिक पारिवारिक आय लगभग 65,000 रुपए है जो शहरी परिवार की औसत त्रैमासिक आय लगभग 45,000 रुपये से लगभग डेढ़ी है.
बात चौंकने वाली है लेकिन हकीकत है. दूसरी श्रेणी के समझे जाने वाले शहर औसत पारिवारिक आय के मामले में मेट्रो शहरों से आगे हैं. वाकई एकबारगी तो विश्वास नहीं होता किंतु जब बात सेंटर फार मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी की हो तो भरोसा करना ही पड़ता है.
जालंधर, आगरा व रायपुर जैसे शहर आकार में भले ही कई अन्य शहरों से छोटे हों, लेकिन जहां तक प्रति परिवार की औसत आय का सवाल है तो ये कहीं आगे हैं. इन अपेक्षाकृत छोटे शहरों में परिवारों की औसतन आय देश के शहरी परिवारों की औसत आय से अधिक है.
सर्वे के अनुसार, उम्मीदों के शहर श्रेणी वाले शहरों में औसत त्रैमासिक पारिवारिक आय लगभग 65,000 रुपए है जो शहरी परिवार की औसत त्रैमासिक आय लगभग 45,000 रुपये से लगभग डेढ़ा है.
सर्वे में यह निष्कर्ष निकालते हुए इन शहरों को उम्मीदों का शहर बताया गया है. भारत में शहरीकरण के बारे में मॉर्गन स्टेनली की अल्फावाइस एविडेंस सीरीज रिपोर्ट में देश के 200 शीर्ष शहरों को शामिल किया गया है. सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकॉनामी के अनुसार देश में एक शहरी परिवार की औसत त्रैमासिक आय लगभग 45,000 रुपये है, जबकि उम्मीदों के शहर श्रेणी वाले शहरों में यह राशि लगभग 65,000 रुपये बैठती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जनसंख्या के लिहाज से देश के 200 शीर्ष शहरों में शहरीकरण के कारणों में बुनियादी ढांचा, रोजगार अवसर, आधुनिक ग्राहक सेवाएं शामिल हैं. इसके अनुसार देश के 50 शीर्ष शहरों में बेंगलूर, हैदराबाद, पुणे सबसे गतिशील हैं. त्रैमासिक आय के लिहाज से देश के 50 शीर्ष शहरों की सूची में मैसूर दूसरे, मेरठ छठें तथा मुंबई 21वें स्थान पर है.
इस तथ्य से ये जाहिर होता है कि अब छोटे समझे जाने वाले शहर छोटे नहीं रहे. इन शहरों की क्षमता को कम करके आंकना गलत होगा. सरकार को भी इन शहरों की ओर उद्योग और रोजगार की बेहतरी के लिए तेजी से प्रयास करना चाहिए ताकि ये शहर मुख्य धारा के शहरों की तरह तमाम आवश्यक अवस्थापनाओं से लैस होकर देश की समृद्धि में अपना योगदान दे सकें.
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