Menu
blogid : 318 postid : 216

संकट में खेती-किसानी

अर्थ विमर्श
अर्थ विमर्श
  • 173 Posts
  • 129 Comments

भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। देश में कृषि का अहम योगदान है। फिर भी हमारे देश में कृषि और किसानों की स्थिति अच्छी नहीं है। भले ही अब तक सरकारों ने कृषि क्षेत्र के विकास के लिए उपायों की झड़ी लगा दी हो, लेकिन वास्तविकता यही है कि कृषि क्षेत्र का विकास दर बढ़ने के बजाय 0.2 प्रतिशत घटा है। लगातार बढ़ती आबादी और औद्योगीकरण के विस्तार के चलते कृषि योग्य जमीन घटने से यह संकट दिनोंदिन बढ़ रहा है। पिछले दो दशकों, खासकर उदारीकरण के दौर में आर्थिक सुधरों के नशे में कृषि क्षेत्र की जमकर उपेक्षा हुई। आजादी के समय जहां देश की लगभग 70-75 प्रतिशत जनसंख्या आजीविका के लिए खेती पर निर्भर थी वह अब यह घटकर 52 प्रतिशत पर पहुंच गई है। सचमुच अपने देश के कृषि परिदृश्य और अन्य उत्पादन पर निगाह डाली जाए तो संतोष के साथ ढेर सारी चुनौतियां ही नजर आती है। हालांकि हमारा खाद्यान्न भंडार किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने में सक्षम है। फिर भी देश की 26 करोड़ आबादी एक वक्त भूखे सोने पर मजबूर है और 37.2 प्रतिशत से अधिक आबादी आज भी गरीबी की मार झेल रही है।


2002 में जहां प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता 494 ग्राम प्रतिदिन था वही पांच साल बाद यह घटकर 439 ग्राम पहुंच गया है। सवाल यह है कि तमाम कोशिशों के बाद भी खाद्यान्न उत्पादन जरूरत के अनुपात में बढ़ने की बजाय घट क्यों रहा है? क्या इसकी प्रत्यक्ष वजह मौजूदा नीतियों में निहित खामियां हैं। आज कृषि के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती स्वयं इसका अस्तित्व बचाए रखना बन गया है। भारत के पास आज दुनिया की कुल 2.4 प्रतिशत जमीन है पर दुनिया की आबादी का करीब 18 प्रतिशत हिस्सा भी भारत में ही रहता है। खेती लायक जमीन सिर्फ अमेरिका में हमसे ज्यादा है और जल क्षेत्र सिर्फ कनाडा और अमेरिका में अधिक है। फिर भी स्थिति यह है कि हमारे देश में कृषि खराब हालात में है। हमारे यहां प्रतिव्यक्ति0.3 हेक्टेयर कृषि भूमि है, जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा 11 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति है। दूसरी ओर कृषि के आवश्यक साधनों की उपलब्धता विश्व औसत की तुलना में चार से छह गुना कम है।


सूखा तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप भी बढ़ रहा है। साथ ही वैश्विक जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी आपदा भी कृषि के भविष्य के लिए चुनौती बन गई है। सचमुच देश में आज कृषि क्षेत्र की सेहत ठीक नहीं है। जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव किसानों पर पड़ा है, क्योंकि देश में किसानों की आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ अग्रणी राज्य हैं। किसान आत्महत्याओं के आधे से अधिक मामले इन राज्यों में ही होते हैं। केंद्र सरकार के नेशनल क्राइम रिकॉ‌र्ड्स ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2009 में 17,368 किसानों ने आत्महत्या की। जबकि वर्ष 2008 में किसानों की आत्महत्या के कुल 16,196 मामले दर्ज किए गए थे। खास बात यह है कि आत्महत्या वाले इलाके वही है जो पहले भी थे।


महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे पांच राज्यों में ही दो-तिहाई आत्महत्याएं हुई हैं। इनमें महाराष्ट्र की हालत सबसे ज्यादा खराब है। केरल, तमिलनाडु, पंजाब का नंबर इसके बाद आता है तो बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसे अपेक्षाकृत गरीब राज्यों में यह बीमारी काफी कम है। असल में यह मामला अमीरी-गरीबी का न होकर, नए तरह की खेती का है, जिसमें नकदी फसलों के लालच में किसान भारी कर्ज लेकर बीज, खाद, कीटनाशक ही नहीं, बल्कि जमीन भी उधारी लेता है। प्राकृतिक या अन्य किसी कारण से अगर फसल नष्ट हो गई तो उस स्थिति में किसानों के पास आत्महत्या के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता। यही नहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 1997 से लेकर पिछले साल के अंत तक यानी तेरह वर्षो में दो लाख सोलह हजार पांच सौ किसानों ने आत्महत्या की। हालांकि यह अवधि देश में ऊंची विकास दर की रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार को इसकी जानकारी नहीं है। फिर भी सरकार के पास ऐसा कोई सकारात्मक समाधान किसानों के लिए या खेती के लिए नहीं है जो वह मुहैया करा सके। इस साल के बजट में सरकार ने किसानों को लुभाने का प्रयास करते हुए उन्हें समय पर फसली कर्ज लौटाने पर ब्याज में राहत देने की घोषणा की है। साथ ही, आगामी वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र के लिए कर्ज देने के लक्ष्य में एक लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर 4.75 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।


किसानों का हौसला बनाए रखने के लिए बजट में चार प्रतिशत की दर पर फसली कर्ज देने का एलान है। ज्ञात है कि अभी फसली कर्ज पर सात फीसदी ब्याज देय होता है। वित्तमंत्री के मुताबिक किसानों को समय पर कर्ज लौटाने पर तीन फीसदी ब्याज की छूट मिलेगी। इसके अलावा बैंकों से कहा गया है कि वे लघु और सीमांत किसानों को उधारी देने पर ध्यान केंद्रित करें। साथ ही कृषि उपकरण भी सस्ते कर दिए गए हैं। इससे किसानों को काफी लाभ मिलने की उम्मीद की जा रही है। इसी तरह बजट में सरकार ने अपनी ओर से किसानों को राहत पहुंचाने की हर तरह से कोशिश की गई है। किसानों को सरकार की इन कोशिशों से निराशा ही हुई है। जाने-माने कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का भी कहना है कि यह बजट कृषि क्षेत्र के लिए कई बातें पूरी करने में सक्षम नहीं है। इस बजट में खेती को आकर्षक बनाने के लिए कोई प्रभावी प्रयास नहीं किया गया है और युवाओं को खेती की तरफ आकर्षित करने में भी यह बजट विफल है। महिला सहायता राशि बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये किया गया है इससे महिला किसानों को लाभ होगा।इसी तरह बजट में सरकार ने हरित क्रांति के विस्तार का सपना दिखाया है, लेकिन आधे-अधूरे मन से। हरित क्रांति के लिए जिन आधे दर्जन राज्यों को चुना गया है उनकी माली हालत बहुत खराब है। उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए सिर्फ 400 करोड़ रुपये का प्रावधान है। इनमें प्रत्येक राज्य के हिस्से में 70 करोड़ रुपये भी नहीं आएंगे। ऐसे में ये राज्य क्या नहाएंगे और क्या निचोड़ेंगे।

भारत के 40 प्रतिशत किसान इच्छा जता चुके हैं कि उन्हें आजीविका का कोई विकल्प मिल जाए तो वे खेती को एक भी पल खोए बिना तिलांजलि दे देंगे। उदारीकरण व भूमंडलीकरण के बावजूद स्थिति में कोई क्त्रांतिकारी बदलाव खेती व किसानों की दशा में नहीं हो रहा है। देश के औसत किसानों को प्रति माह गुजारा महज 503 रुपये की आमदनी में करना पड़ रहा है। इसमें केरल और पंजाब जैसे संपन्न राज्यों के किसान भी शामिल हैं। इस 503 रुपये प्रति महीने में से उसे 60 फीसदी हिस्सा अपने भोजन के लिए खर्च करना पड़ता है। वर्ष 1998-99 में किसान क्रेडिट योजना प्रारंभ की गई। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट 2009-10 के मुताबिक इस योजना के तहत अब तक 3,50,80,000 किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जा चुके हैं। जिनकी कुल ऋण आवंटन सीमा 1,97,607 करोड़ रुपये है। वही 2008-09 में कृषि ऋण की राशि 2,87,000 करोड़ रुपये दर्ज की गई थी। जिसे बढ़ाकर 2011-12 में 4,75,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। फिर भी हमारे किसानों को भारतीय कृषि जोखिम भरी लगती है।


द्वारा: रविशंकर


साभार: दैनिक जागरण ई पेपर

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh