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कब मिटेगी भ्रष्टाचार की कालिख

अर्थ विमर्श
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भ्रष्टाचार को लेकर भारत की छवि वैश्विक परिदृश्य में कितनी खराब हुई है, इसका ताजा प्रमाण है हांगकांग स्थित एक प्रमुख व्यापारिक सलाहकार संस्थान ने अपने सर्वे में भारत को एशिया-प्रशांत के 16 देशों के बीच चौथा सबसे भ्रष्ट देश बताया है। भारत से आगे फिलिपींस (8.9), इंडोनेशिया (9.25) और कंबोडिया (9.27) ही हैं। पोलिटिकल एंड इकोनोमिकल रिस्क कंसल्टंसी लिमिटेड (पीइआरसी) ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए भारत को 10 में से 8.7 अंक दिए हैं। इस सूची में 0.37 अंक लेकर सिंगापुर सबसे कम भ्रष्ट देश है। फर्म ने एशियन इंटेलिजेंस रिपोर्ट आन एशियन बिजनेस एंड पोलिटिक्स में कहा है कि संप्रग-2 ज्यादा भ्रष्ट है। वहीं स्थानीय स्तर के नेताओं को 9.25 अंक, जबकि राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को 8.97 अंक दिए गए हैं। यानी स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार ज्यादा होता है।


सर्वेक्षण कितना सही है, यह बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन यह भी उतना ही सच है की कांग्रेसनीत संप्रग-2 के शासनकाल ने भारत की छवि को जमकर दागदार किया है। यदि भारत के शीर्ष दस बड़े घोटालों पर नजर डाली जाए तो शीर्ष तीन घोटाले तो इसी कांग्रेसनीत संप्रग-2 के शासनकाल में हुए हैं। तकरीबन 70,000 करोड़ रुपये के राष्ट्रमंडल खेल घोटाले ने तो एक वक्त इस खेल आयोजन के औचित्य पर ही सवालिया निशान लगा दिए थे। वह तो भला हो हम हिंदुस्तानियों की मजबूत इच्छाशक्ति का, जिसके दम पर भारत की लाज बच गई। पर इस हाई-प्रोफाइल महाघोटाले ने हमारी ओलंपिक मेजबानी की दावेदारी को जरूर कमजोर किया है। उस पर भी तुर्रा देखिए कि घोटाले का सरताज कलमाडी अब भी बचे हुए हैं। वहीं 1.76 लाख करोड़ का 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला तो आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला साबित हुआ। गठबंधन की मजबूरी कहें या सत्ता को अपने पास रखने का तरीका, ए राजा की कारगुजारियों पर ईमानदार प्रधानमंत्री ने भी अपनी आंखें मूंद लीं। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में राष्ट्रहित को भी तिलांजलि दे दी गई। इस महाघोटाले के तार कितने गहरे हैं, अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। महाराष्ट्र में हुए आदर्श सोसाइटी घोटाले में तो देश पर शहीद होने वाले सैनिकों को भी नहीं बख्शा गया।


दरअसल, कांग्रेस ने देश पर इतना लंबा शासन किया है कि अब पार्टी के नेता देश को ही अपनी जागीर समझने लगे हैं। तभी तो हर बड़े घोटाले में कांग्रेस के कर्णधारों का नाम प्रमुखता से उभरता है। वहीं गांधी-नेहरू परिवार से जुड़े घोटाले तो रहस्य की मिसाल पेश करते हैं। बोफोर्स कांड का क्या हुआ, सारी दुनिया को पता है? कांग्रेस भी येन केन प्रकारेण सत्ता में बने रहने को उतावली रहती है। कई बार अन्य क्षेत्रीय दल भी कांग्रेस की इसी महत्वाकांक्षा का फायदा उठाते हैं और जमकर घपले-घोटाले करते हैं। वर्तमान में जिस तरह एक से बढ़कर एक घोटाले उजागर हो रहे हैं, उससे संप्रग-2 की प्रासंगिकता पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। प्रधानमंत्री मुझे कुछ नहीं मालूम से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं तो सोनिया गांधी मुझे कुछ नहीं कहना की तर्ज पर अपना मुंह बंद किए हुए हैं। ऐसा लगता है मानो देश की जनता ने भी उनकी इस बेशर्मी को अपनी नियति मान सरकार को बर्दाशत करना सीख लिया है।


सर्वेक्षण के अनुसार, भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चौथे पायदान पर है। यदि संप्रग सरकार की उदासीनता और कांग्रेस की सत्ता को स्वाभाविक मानने की प्रवृत्ति ऐसे ही हावी रही तो वह दिन दूर नहीं, जब हम भ्रष्टाचार में शीर्ष पर होंगे। यह हमारे देश के स्वर्णिम इतिहास के साथ नाइंसाफी होगी, जिसके लिए जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस के कर्णधारों होंगे। देश आखिर कब तक कांग्रेस के पापों की गठरी यों ही ढोता रहेगा? आखिर हम कब तक एक पार्टी की नीतियों के कारण भ्रष्टाचारी कहलाते रहेंगे!


सिद्धार्थ शंकर गौतम: लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


साभार: दैनिक जागरण ई पेपर

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