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क्या भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बुरा दौर शुरू हो चुका है?

अर्थ विमर्श
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indian economyइस समय भारतीय अर्थव्यवस्था का आइना धुंधला होता जा रहा है. इसमें वैश्विक और आंतरिक कारणों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. आज भारत के सामने चुनौतियों का भंडार खड़ा हो गया है जिससे पार पाना भारत के लिए आसान नहीं होगा. भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर आए दिन आ रहे नकारात्मक खबरों ने लोगों को हैरान कर दिया है. भारतीय अर्थव्यवस्था में छायी सुस्ती सरकार की गलत नीतियों का परिणाम है. आर्थिक सुधारों के मामले में सरकार कभी गंभीर नजर नहीं आई जिसका नतीजा यह हुआ कि आज भारत की अर्थव्यवस्था की गाड़ी रुक सी गई है और इन सबका बोझ आम जनता पर देखने को मिल रहा है.


पेट्रोल के दाम में बढोत्तरी : Petrol Price Hike

संसद का बजट सत्र समाप्त होने के अगले ही दिन सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने पेट्रोल के दाम 7.54 रुपये लीटर बढ़ा दिए. एक ही झटके में की जाने वाली यह अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि है. इस खबर ने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया और यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि किस तरह से सरकार अपनी नाकामियों का बोझ आम जनता के उपर डाल सकती है. सवाल यह भी उठाए जा रहे हैं कि जब कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में नहीं बढ़ाई जा रही तो सरकार कीमतों को कैसे बढ़ा सकती है.


फिर मंदी का साया


रुपए की कीमत में भारी गिरावट : Rupee Fall Against Dollar

एक समय था जब डॉलर की कीमत 3 से 4 रुपए हुआ करती थी लेकिन आज डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा लगातार गिरावट दर्ज कर रही है. किसी भी अर्थव्यवस्था का स्वस्थ स्वरूप तभी देखने को मिलता है जब उसकी मुद्रा नियंत्रित हो. आज भारतीय मुद्रा की कीमत 56 रूपया प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है. भारतीय मुद्रा का इस तरह से अनियंत्रित होना बिलकुल समझ से परे है. सरकार हर बार की तरह इसके लिए विदेशी परिदृश्य को जिम्मेदार ठहराती है. मुद्रा की कीमत कम होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को कई मोर्चों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है.


भारत में कच्चे तेल की मांग का अस्सी प्रतिशत मांग आयात पर निर्भर है और तेल का अंतरराष्ट्रीय व्यापार डॉलर में होता है. जब बाजार में तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो उसका व्यापार घाटा भी उसी अनुपात में ऊपर चला जाता है. कच्चे तेल के अलावा भारत कई अन्य वस्तुओं का भी आयात करता है जिसका भुगतान भी डॉलरों में करना पड़ता है. जाहिर है जब आयात अधिक होगा तो डॉलर में पेमेंट होने के कारण देश में डॉलर की कमी होगी. अगर भारत निर्यात भी अधिक करता तो यह घाटा नियंत्रण में आ जाता क्योंकि भारतीय निर्यातकों को भी पेमेंट डॉलर में ही दिए जाते हैं. लेकिन इस समय भारत के निर्यात में भी भारी गिरावट देखने को मिल रही है.


औद्योगिक विकास में गिरावट : Industrial Production

औद्योगिक विकास के मालमे में पिछले कुछ सालों में भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा. पिछले वर्ष मार्च में ये 9.5 प्रतिशत था लेकिन आंकड़े बताते हैं कि पिछले महीने औद्योगिक उत्पादन सूचकांक पांच वर्षों में सबसे कम यानि 3.5 पर रहा है. औद्योगिक उत्पादन में गिरावट से निवेश और विस्तार रुक गया. भारतीय अर्थव्यवस्था की बीमार हालत को देखते हुए संस्थागत और विदेशी निवेशक दूर भागते नजर आ रहे हैं. उनके लिए भारत में निवेश करना सुरक्षित नहीं रह गया.


सरकार को इस बिगड़ते हुए हालात पर जल्द से जल्द काबू पाना होगा. बढ़ रहे राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए सरकारी खर्चों में कमी लानी होगी और भ्रष्टाचार और काले धन पर रोक लगाने के लिए कड़े नियम बनाने होंगे.


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