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खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मुद्दे पर पूरे देशभर में बहस चल रही है. इस अकेले मुद्दे ने संसद के कामों को पिछले कई महीनों से बाधित कर रखा है. एक वर्ग ऐसा है जो इसके नुकसान को गिना रहा है तो दूसरा वर्ग इसे देश हित में बता रहा है. इस मुद्दे पर बुद्धिजीवी वर्ग के भी अलग-अलग तर्क हैं.
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खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में जिस अकेली कंपनी की सबसे ज्यादा चर्चा की जा रही है वह रोजमर्रा के सामान बेचने वाली दुनिया की सबसे बड़ी अमरीकी कंपनी वालमार्ट है. जो लोग एफडीआई को देश के हित में देख रहे हैं उनका मानना है कि वालमार्ट के आने से भारत में अरबों रुपये का निवेश होगा, हजारों-लाखों बेरोजगार लोगों को रोजगार मिलेगा, किसानों का हर दुख-दर्द दूर होगा, देश में खुशहाली आएगी आदि. क्या सच में ही ऐसा होगा. क्या यह अकेली कंपनी लाखों लोगों की उम्मीद बन पाएगी. कहना तो मुश्किल है लेकिन कुछ ऐसे तर्क हैं जो यह बताते हैं कि फुटकर व्यापार में अपना दबदबा बना चुकी इस कंपनी के अपने ही विवाद हैं.
विश्व के कई मजदूर संघ और पर्यावरण समूह इस कंपनी की नीतियों और कार्यप्रणाली का विरोध करते आए हैं.
कंपनी के ऊपर कम मजदूरी देने और अपर्याप्त हेल्थ केयर के भी आरोप हैं.
जिस देश में भी इस कंपनी के स्टोर खोलने की योजना बनाई जा रही है वहां पर पर्यावरण संबंधी समस्या पैदा हुई है. कई जगह लोगों ने अपने विरोध से इसके निर्माण कार्य को भी रुकवाया है.
वालमार्ट का आधा से अधिक माल चाइना से आयात किया जाता है.
जिस तरह से ग्राहकों को बेचने के लिए वालमार्ट उत्पादों का चयन करता है उस पर भी लगातार कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.
वालमार्ट के ऊपर मैक्सिको, ब्राजील और चीन में कारोबार बढ़ाने के लिए अधिकारियों को रिश्वत दिए जाने के कथित आरोप भी हैं.
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