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अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति ज्यादा होने का मतलब है आवश्यक चीजों के दामों में बढ़ोत्तरी. यह इस बात का संकेत देता है कि महंगाई तेजी से बढ़ रही है. बढ़ती हुई मंहगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक समय-समय पर कुछ ऐसे उपाय करती हैं जिससे मुद्रास्फीति की दर को निम्न स्तर पर लाया जा सके.
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए मुख्य रूप से दो तरीकों को अपनाया जाता है – 1. मौद्रिक नीति 2. राजकोषीय नीति.
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1. मौद्रिक नीति: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए जिस नीति का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है उसका नाम है मौद्रिक नीति. देश का केंद्रीय बैंक कुछ महीने के अंतराल में मौद्रिक नीति जारी करता है. परंपरा के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को कम करने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाता है.
मौद्रिक नीति के जरिए हम मुद्रास्फीति को तीन तरीके से नियंत्रण कर सकते है.
बैंक दर नीति: मुद्रास्फीति के दौरान बैंक दर मौद्रिक नीति का सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है. बैंक दर एक तरह का ब्याज दर होता है जिसके तहत आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को दिए गए ऋण को एक चार्ज के रूप में वसूल करता है. यह आमतौर पर एक त्रैमासिक आधार पर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और देश के विनिमय दर को स्थिर करने के लिए जारी किया जाता है. अगर आरबीआई चाहता है कि बाजार में पैसे की आपूर्ति और तरलता बढ़े तो वह बैंक रेट को कम करेगा वहीं यदि वह चाहता है कि बाजार में पैसे की आपूर्ति और तरलता कम हो तो वह बैंक रेट को बढ़ाएगा.
कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर): सभी वाणिज्यिक बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें. आरबीआई को जब आवश्यकता महसूस हो वह अर्थव्यवस्था के संतुलन के लिए समय-समय पर कैश रिजर्व रेश्यो को घटा या बढ़ा सकता है. अगर आरबीआई को लगता है कि बाजार में पैसे की सप्लाई को कम किया जाए तो वह सीआरआर बढ़ा देता है जिससे वाणिज्यिक बैंकों से लोगों तक पहुंचने वाला पैसा कम हो जाता है. इसके विपरीत अगर उसको लगता है तो सीआरआर के रेट को घटाकर बाजार में मनी सप्लाई बढ़ा सकता है. सीआरआर और रेपो रेट में अंतर इतना ही है कि सीआरआर में बदलाव बाजार को लंबे समय बाद प्रभावित करता है जबकि रेपो और रिवर्स रेपो दरों में बदलाव बाजार को तुरंत प्रभावित करता है.
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ओपन मार्केट ऑपरेशन: ओपन मार्केट ऑपरेशन के तहत केंद्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों और बॉंड को खरीदा और बेचा जा रहा है. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों के जरिए सरकारी प्रतिभूतियों को बेचता है.
2. राजकोषीय नीति: मुद्रास्फीति पर नियंत्रण के लिए जिस राजकोषीय नीति को अपनाया जाता है उसमें शामिल है कराधान, सरकारी खर्चा, पब्लिक बॉरोइंग. इसके अलावा सरकार मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए आवश्यक वस्तुओं जैसे दालें, अनाज और तेल आदि के निर्यात पर प्रतिबंध लगा देती है.
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