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आत्महत्या को विवश हैं हमारे अन्नदाता

अर्थ विमर्श
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farners 1पांच साल के इंतजार के बाद फिर से आम चुनाव का मौसम आने वाला है. देश की सभी राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है. हर बार की तरह इस बार भी इन पार्टियों के लिए देश का किसान सबसे बड़ा मुद्दा है क्योंकि देश का यही किसान राजनीतिक पार्टियों की दिशा और दशा तय करता है. किसकी सरकार बनेगी और कौन सत्ता से बाहर होगा इसका भी निर्धारण हमारे देश का किसान ही करता है. किसानों के चुनावी महत्व को देखते हुए ये सभी पार्टियां अपने घोषणा पत्र में तरह-तरह घोषणाएं और वादे करती हैं. उनसे जुड़े मुद्दों को राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे बनाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं. इसमें किसान आत्महत्या का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण है.


जब देश के किसान इन राजनीतिक पार्टियों के लिए इतने अहम होते हैं फिर भी ऐसा क्यों होता है कि यही किसान सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति में होते हैं. सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी कृषि और किसानों की हालत ज्यों की त्यों क्यों बनी रहती है. जानकार मानते हैं इसके पीछे की बड़ी वजह तमाम तरह की गड़बड़ियां और भ्रष्टाचार है. सरकार द्वारा दिए जाने वाले राहत पैकेज का जो लाभ देश के गरीब किसानों को मिलना चाहिए वह लाभ देश के बड़े किसान और विधायक उठा रहे हैं. ऐसे मुद्दों में भ्रष्टाचार इस कदर अपनी जड़ें जमा चुका है कि किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है.


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बीज के दाम: किसानों की आत्महत्या में मुख्य वजह बीजों के ऊंचे दाम हैं. बीज को खरीदने में कई किसान गहरे कर्ज में डूब जाते हैं. जब फसल की सही कीमत नहीं मिलती है तो उन्हें आत्महत्या कर लेना ही एकमात्र विकल्प नजर आता है.


मानसून: विदर्भ जैसे इलाकों के किसानों की मुख्य चिंता तो मानसून भी है. कई-कई महीनों तक बारिश न होने से कई किसानों ने अपने-आप को मौत के गले लगा लिया.


खेती की लागत: जिस अनुपात में खेती की लागत बढ़ रही है उस अनुपात में किसानों की आमदनी नहीं बढ़ रही है. यही वजह है कि आज ज्यादातर किसान खेती छोड़कर बाहर निकलना चाह रहे हैं.


न्यूनतम समर्थन मूल्य: किसानों के लिए आमदनी का मुख्य जरिया है सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य. लेकिन यहां भी गड़बड़झाला होने की वजह किसनों को अपनी फसल की सही कीमत नहीं मिल पाती. व्यापारियों और बिचौलियों द्वारा किसानों को इतना मजबूर कर दिया जाता है कि वह अपनी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर बेचने पर तैयार हो जाएं.


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महंगाई: एक आंकड़े से पता चलता है कि भारत में किसान इसलिए भी आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि महंगाई होने की वजह से वह जीने लायक पैसे भी नहीं कमा पाते हैं.अब डीजल के दाम तेल कंपनियों के हाथ छोड़ देने की वजह से ऐसा माना जा रहा कि इससे किसानों की हालत और दयनीय होगी.


देश में हो रही त्रासदी पर जब राजनीतिक पार्टियों से सवाल किए जाते हैं तो वह कई तरह दावे करने लगती हैं. अपने आप को किसानों की हितैषी साबित करती हैं. लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े उनके दावों की पोल खोलते हैं. आंकड़ों के मुताबिक 2010 में देश भर में कुल 15,964 किसानों जबकि 2011 में कम से कम 14,027 किसानों ने आत्महत्या की. आधिकारिक तौर पर वर्ष 1995 से अब तक 2,70,000 किसानों ने आत्महत्या की है.


किसानों की बढ़ते आत्महत्याएं एक गहरे कृषि संकट का लक्षण हैं. जिस भारत देश को कृषि का देश कहा जाता है और जहां की 60 प्रतिशत अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर रहती है वहां जब अन्न को पैदा करने वाले अन्नदाता ही नहीं होंगे तो आप समझ सकते हैं कि स्थिति कितनी गंभीर है. ऐसा नहीं है इन आंकड़ों से सरकारे अनजान हैं लेकिन ऐसी सरकारें किसानों की हालत के बारे में उस समय अधिक तत्पर दिखाई देती हैं जब चुनाव नजदीक होते हैं.


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Tag:economy, business and finance,agriculture,Agriculture distress, farmers’ suicide, lack of water, किसान, भारतीय किसान, आत्महत्या.

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