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कुपोषण को खत्म कर पाएगा खाद्य सुरक्षा विधेयक ?

अर्थ विमर्श
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malnutritionआज से बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत हो गई है. इस सत्र में सरकार के सामने कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराए जाने की चुनौती है. इन्हीं में से एक है महत्‍वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा विधेयक. खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री के बी थॉमस ने विश्वास जताया है कि यह विधेयक इसी सत्र में पारित हो जाएगा लेकिन जिस तरह दिल्ली रेप के मुद्दे पर विपक्ष ने कड़ा रुख अपना रखा है उससे तो लगता है कि इस बार भी यह विधेयक अधर में लटक जाएगा.


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के बी थॉमस के मुताबिक महत्‍वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा विधेयक देश की खाद्य वितरण व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा. यह विधेयक भूख और कुपोषण को खत्म करने में बहुत मददगार सिद्ध होगा. उनका कहना है कि इससे 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी. इसमें बच्चों, गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं के पोषण की जरूरत पर विशेष ध्यान दिया गया है. अब सवाल उठता है खाद्य सुरक्षा विधेयक के जरिए थॉमस जिस तरह के सपने दिखा रहे हैं क्या यह सपना सच हो सकता है.


अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो दुनिया के 90 प्रतिशत कुपोषित बच्चे 36 देशों में रहते हैं, जिनमें से भारत भी एक है. इससे ज्यादा अफसोस की बात यह है कि कुपोषण के मामले में भारत पौष्टिकता के पैमाने के निचले पायदान पर अंगोला, कैमरून, कांगो और यमन जैसे देशों के साथ है. यहां तक कि इस मामले में बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल भी हमसे बेहतर स्थिति में हैं. गौर करने वाली बात यह है कि हम इन सभी से ज्यादा तेज गति से आर्थिक तरक्की कर रहे हैं फिर भी यह भारत देश के बच्चों को पोषित करने में तब्दील नहीं हो सका है. यही कारण है कि भारत में लगभग आधे बच्चे अंडरवेट और अपनी उम्र के अनुरूप विकसित नहीं हैं.


आंकड़ों के अनुसार भारत के आधे से ज्यादा बच्चे अपनी आयु के अनुरूप वजन और कद भी हासिल नहीं कर सके हैं, जबकि 70 फीसद से अधिक महिलाओं व बच्चों को उन बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है, जो सीधे कुपोषण से जुड़ी हैं. 70 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं और बच्चे गंभीर पौष्टिकता की कमी का सामना कर रहे हैं, जिसमें एनीमिया भी शामिल है.


अध्ययन में विभिन्न देशों की सरकारों की इस आधार पर समीक्षा की गई है कि वे कुपोषण को दूर करने के प्रति कितनी समर्पित हैं और उसके नतीजे क्या निकले हैं. अध्ययन में इस बात की भी तुलना की गई है कि सरकारें कुपोषण को दूर करने और बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए किस किस्म के प्रयास कर रही हैं. इसमें पाया गया है कि भारत जैसे देश आर्थिक विकास के बावजूद अधिकतर बच्चों को कुपोषण से बचाने में नाकाम रहे हैं. यह पहला अवसर नहीं है जब भारत की सामाजिक सच्चाई के संदर्भ में इतनी निराशाजनक तस्वीर सामने आई है.


निश्चित रूप से यह शर्म की बात है कि जो देश आर्थिक दृष्टि से प्रगति कर रहा हो और अंतरराष्ट्रीय मंच पर महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने का सपना देख रहा हो, उसी देश में कुपोषण की स्थिति अफ्रीका के गरीब देशों जितनी ही बदतर हो.


अब सवाल उठता है कमी कहां पर है. जानकार मानते हैं कि सरकार की इच्छाशक्ति में कमी की वजह से ही नतीजे भी आशानुरूप सामने नहीं आ रहे हैं.  यह बात 2011 में जो कुल बाल मृत्यु हुईं उससे साफ पता चलता है. इसमें एक तिहाई यानी 23 लाख बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से ही हुई है. इसके पीछे जो मुख्य वजह बताई जा रही है वह भ्रष्टाचार की वजह से सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच पाना है. अगर थॉमस कहते भी हैं कि खाद्य सुरक्षा विधेयक के पारित हो जाने से नतीजे सकारात्मक देखने को मिल सकते हैं तो उससे कहीं न कहीं सरकार की तरफ छलावा ही अधिक दिखाई दे रहा है.


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