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काले धन से फलता-फूलता है चिट फंड कारोबार

अर्थ विमर्श
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पश्चिम बंगाल में शारदा चिट फंड घोटाला लाखों लोगों को चूना लगा गया. कंपनी के मालिक सुदीप्तो सेन तथा अन्य 3 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. सुनने में यह भी आ रहा है कि सुदीप्तो सेन ने सीबीआई को 18 पन्नों का खत लिखकर इस चिट फंड में पश्चिम बंगाल के कई नेताओं द्वारा ब्लैकमेल किये जाने की बात कही है जो ममता बनर्जी की सरकार के लिये भी मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. सेबी ने भी इस पर नये सिरे से जांच शुरू कर दी है.


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क्या है चिट फंड?

‘चिट फंड’ एक बचत योजना है जिसमें निवेशक पैसों के अलावे अन्य रूपों जैसे अनाज, सोना या अन्य एसेट्स में भी निवेश कर सकते हैं. भारत में यह चिट फंड एक्ट, 1982 के अंतर्गत चलाया जाता है. चिट फंड एक्ट, 1982 की धारा 2 के अनुसार, चिट का अर्थ है ट्रांजैक्शन जो चिट, चिट फंड, चिट्टी आदि कहलाते हैं जिसमें एक सीमित संख्या में निवेशक एक निर्धारित राशि या उसके बराबर अन्य एसेट्स जैसे अनाज, सोना आदि में निवेश एक निर्धारित समय के लिये करते हैं. इसमें एग्रीमेंट के अनुसार निवेशकों को उनके निवेश की राशि से दोगुनी, तिगुनी या और भी ज्यादा अधिक राशि रिटर्न के तौर पर मिलती है. इसमें ज्यादातर छोटे निवेशक या किसान निवेश करते हैं.


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शारदा चिट फंड घोटाला 1980 में संचयिता चिट फंड की याद दिलाता है जिसमें अपनी जमा-पूँजी गंवाकर कई निवेशकों और एजेंट्स ने आत्महत्या कर ली थी. 120 करोड़ का चूना लगाने के बाद पकड़े जाने पर इसके मालिक शंभू मुखर्जी ने आत्महत्या कर ली. इसके बाद सरकार ने इस पर लगाम कसने के लिये कई चिट फंड कंपनियों को बंद करवाया. पर आज भी ये कंपनियां बहुतायत अपना कारोबार कर रही हैं. चिट फंड कंपनियों पर ये भी आरोप लगता रहा है कि यह काले धन को सफेद बनाने के लिए खोली जाती है. सहारा का मामला कुछ ऐसा ही रहा है. कई छोटी चिट फंड कंपनियां तो केवल यही कारोबार करती रही हैं और हकीकत में उनका और कोई निवेश नहीं होता.


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शारदा चिट फंड मामला

शारदा चिट फंड निवेशकों से 100 रु. से 1000 तक की राशि 12 से 60 महीनों के लिये निवेश करवाते हुए 12 से 24% का लाभ के साथ रिफंड का दावा करती थी. इतना ही नहीं कंपनी निवेश की रिटर्न में नकद रकम के अलावे जमीन, फ्लैट आदि माध्यम भी थे. नये निवेशकों को निवेश एग्रीमेंट के तहत इनमें से कोई भी रिटर्न माध्यम चुनने की छूट थी. निवेशकों को ये सुविधायें लुभाती थीं क्योंकि एक छोटे निवेश से जमीन और फ्लैट पा लेना उन्हें ज्यादा लाभकारी लगता था. कंपनी की विश्वसनीयता पर उन्हें शक नहीं होता था क्योंकि शारदा निवेशकों का पैसा किसी एक जगह लगाने की बजाय रियल एस्टेट, मीडिया, एग्रो, हॉस्पिटैलिटी आदि कई कारोबारों में लगाये जाने का भरोसा देती थी. शारदा की वेबसाइट पर भी इसके इन कारोबारों की जानकारी होती थी. अतः निवेशकों को इन पर शक नहीं होता था. असलियत में शारदा का रियल स्टेट आदि का कोई कारोबार नहीं था. इसका सारा कारोबार नये निवेशकों के जुड़ने से था. नये निवेशकों के आने से मिली रकम वह रिटर्न और निवेश से मिले लाभ के रूप में पुराने निवेशकों को दे देता था. कंपनी घाटे में जाने लगी क्योंकि निवेशकों की निवेश अवधि कम थी और निवेशक आने कम हो गये. इस प्रकार लाखों निवेशकों के करोड़ों रुपए लेकर सेन को भागना पड़ा और मामला प्रकाश में आया.


चिट फंड कानून

भारत में चिट फंड कारोबार ‘चिट फंड एक्ट, 1982’ के तहत होता है. चिट फंड कंपनियों को इस एक्ट के अंतर्गत रजिस्ट्रार से रजिस्ट्रेशन करवाना आवश्यक है. इसके अलावे केरल, आंध्र प्रदेश आदि कई राज्यों में राज्य स्तर पर इसके लिये कानून बनाये गये हैं.


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बाजार नियामकों की तय सीमा के अधार पर सेबी ने शारदा रियल्टी को 3 महीने का वक्त दिया है कि वह अपने निवेशकों और एजेंट्स को उनका पैसा वापस करे. शारदा रियल्टी के सीईओ सुदीप्तो सेन इसमें ममता बनर्जी सरकार की तृणमूल कांग्रेस के 22 सांसदों को उन्हें ऐसा करने को मजबूर करने के लिये जिम्मेदार बताते हैं. ममता बनर्जी संचिता चिट फंड जैसी घटना दुबारा दुहराये जाने की आशंका से दूर रहने के लिये निवेशकों को राहत पहुंचाने के लिये 500 करोड़ के राहत कोष की घोषणा कर चुकी हैं. सेबी और आरबीआई भी ऐसा मामला दुबारा न हो इसके लिये अब नये सिरे से रणनीतियों पर विचार कर रही हैं. गौरतलब है कि चिट फंड की एक बड़ी कंपनी सहारा समूह पर सेबी पहले ही शिकंजा कस चुकी है और इसके निवेशकों के करोड़ों की रकम चुकाने की तय समय सीमा पर रकम न चुकाने पर उसकी कई कंपनियों की नीलामी की बात कह चुकी है. इसे लेकर सहारा प्रमुख सुब्रतो रॉय को सेबी ने सम्मन भी जारी किया. अभी हाल-फिलहाल की सहारा की घटना के बाद शारदा का यह नया मामला चिट फंड कंपनियों के बढते कारोबार की पोल खोलती नजर आती है. पर सेबी का कड़ा रुख शायद इन पर लगाम कसने में कामयाब हो.


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