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चढ़ता पारा सिकुड़ती अर्थव्यवस्था

अर्थ विमर्श
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केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation) द्वारा 2013 वित्त वर्ष के लिए जारी आँकड़ों में भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product) की दर 4.8 प्रतिशत (4.8%) बताई गई है. पिछले 10 वर्षों में वित्तीय वर्ष 2002-2003 में 4 प्रतिशत की ग्रोथ रेट के बाद यह दूसरा सबसे कम जीडीपी ग्रोथ रेट है. देश की अर्थव्यवस्था के लिए भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का यह आँकड़ा एक करारा झटका है. हालांकि वित्तमंत्री पी. चिदंबरम इसे आश्चर्यजनक न मानते हुए अनुमानित आँकड़े ही मानते हैं तथा 2013-1014 वित्त वर्ष में जीडीपी (JDP) के 6 प्रतिशत (6%) के स्तर पर पहुँच जाने की बात करते हैं. योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया 6 प्रतिशत की ग्रोथ रेट पर वापस आना मुश्किल बताते हैं.


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gdpसकल घरेलू उत्पाद (GDP ) को किसी देश की अर्थव्यवस्था की आर्थिक स्थिति मापक यंत्र कहा जा सकता है. इसमें देश में एक निश्चित अवधि में उत्पादित सभी वस्तु तथा सेवा के लिए किए गए कुल व्यय को मापा जाता है. यह देश में उस निश्चित अवधि में सभी उद्योगों पर लागू कर एवं वस्तुओं पर सब्सिडी कर को मापता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि उस वित्तीय वर्ष में देश में उत्पादन तथा आय के आंकड़े क्या हैं. केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation) के आँकडों के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2013 का जीडीपी आँकड़ा पिछले एक दशक में सबसे कम है. पिछले आंकडों की तुलना करें तो हमारे लगातार गिरते जीडीपी ग्रोथ रेट का ग्राफ साफ पता चलता है. 2010-2011 वित्तीय वर्ष में जीडीपी ग्रोथ रेट 9.3% थी जो 2012 में घटकर 4% पर पहुंच गई. बढ़ती मंहगाई और कृषि की खराब हालत ने जीडीपी रेट की गिरावट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.


आम जिंदगी में इस ग्रोथ रेट की भूमिका साफ दिखती है. मंहगाई कम करने के लिए आरबीआई (RBI) द्वारा सीआरआर (CRR) और रेपो रेट (Repo Rate) दरों में बढोत्तरी ने बैंक लोन ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी कर दी. सब्जियों, फलों से लेकर अनाज तक महंगाई के दाम आसमान छू रहे हैं. इसके बावजूद कर्मचारियों, नौकरी पेशा लोगों की आय और वेतन में वृद्धि नहीं हुई है या अगर हुई भी है तो बहुत थोड़ी. उतने ही पैसों में पहले से कम चीजें खरीद पाने की आमजन की यह स्थिति जीडीपी रेट घटने में साफ दिखती है. पिछले वर्ष टेलीविजन, कार आदि की बिक्री में आई कमी इस असर को साफ दिखाती है.

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एक बड़ी कंपनी में काम करने वाले दास गुप्ता बताते हैं कि उनके दो बच्चे हैं. उनकी पढाई का खर्च उठाना है. अच्छी आय के बावजूद महंगाई के कारण वे अपनी मूलभूत जरूरतों में कमी करने को मजबूर हैं. पहले जहां वे हर साल गर्मी और सर्दी की छुट्टियों में घूमने जाते थे पिछले साल से उन्होंने इसे नकारा है. बच्चे नई गाड़ी खरीदने की जिद कर रहे थे, सोचा था इस साल वेतन बढ़ने पर उन्हें नई गाडी खरीद कर सरप्राइज दूंगा पर वेतन में वृद्धि इतनी कम हुई है कि पहले और अब में ज्यादा कुछ अंतर नहीं है. ऐसे में अगर गाड़ी में अपना बचत खर्च कर दिया तो आगे का भविष्य भी तो देखना है. ये अकेले दास गुप्ता की कहानी नहीं है, ऐसे कई लोग हैं जो बढ़ती महंगाई से त्रस्त हैं. महंगाई के मुकाबले आय कम है, बैंक लोन महंगा हो गया है तो जरूरी चीजें खरीदनी मुश्किल हैं. ऐसे में गाड़ी और फ्रिज कैसे खरीदें. घरेलू उद्योगों का इससे प्रभावित होना निश्चित है. हर 5 में 3 उद्योगपति 2013 में घाटा होने की बात करते हैं. केवल 44% उद्योगपति ही लाभ की उम्मीद करते हैं.


आगामी मानसून के समय पर आने से कृषि के क्षेत्र में जीडीपी आंकड़े बढ़ने की उम्मीद की जा रही है. पर वर्तमान जीडीपी आँकड़े के अभी कई परिणाम आएंगे. जीडीपी दरों के 4.8% पर पहुंचने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए का मूल्य गिरकर 56.50 रुपये प्रति डॉलर हो गया. इसके साथ ही आगामी 17 जून को आरबीआई की मौद्रिक नीति समीक्षा में भी बैंक की ब्याज दरें बढ़ाने का दबाव रहेगा. पिछली तीन समीक्षाओं में रिजर्व बैंक ने जो 0.75 प्रतिशत की कटौती ब्याज दरों में की है, वह फिर से बढ़ सकता है जो लोगों की क्रय क्षमता को फिर से प्रभावित करेगा.


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