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टूटने वाली है कमर, तैयार रहिए

अर्थ विमर्श
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एक बार फिर रुपया 58.98 रुपया प्रति डॉलर से गिरकर 60 रुपए प्रति डॉलर हो गया. अंतरराष्ट्रीय बाजार में दिन-प्रतिदिन रुपए की यह गिरती स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किलें और ज्यादा बढ़ने का संकेत है. पहले से ही महंगाई से जूझती आम जनता के लिए यह और भी मुश्किलों भरे दिन आने की सूचना दे रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चरमराता यह रुपया एक दुखदाई भविष्य की ओर इशारा कर रहा है. कैसे? आइए देखते हैं.

शायद आप सोचें कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपया गिरे या उठे, इससे आपको क्या फर्क पड़ता है. पर यकीन मानिए सरकार, व्यापार से ज्यादा यह हर आम आदमी को प्रभावित करता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर में व्यापार होता है. रुपया गिरने का अर्थ है कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार सौदों में अब डॉलर के बदले ज्यादा रुपया खर्च करना पड़ेगा. मतलब अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में किसी उत्पाद की कीमत 60 डॉलर है तो पहले जहां 50 रुपए प्रति डॉलर के हिसाब से केवल 3000 रु. देने पड़ते, वहीं अब 60 रु. प्रति डॉलर के हिसाब से 3600 रु. देने पड़ेंगे. रुपए की कीमत जितनी घटेगी यह दर भी बढ़ती जाएगी.

जिसे बाजार की समझ नहीं होगी, वह सोच सकता है कि इससे उन्हें क्या नुकसान है? इससे तो वे प्रभावित होंगे जिनका व्यापार अंतरराष्ट्रीय है जैसे बड़ी-बड़ी औद्योगिक कंपनियां आदि. एक प्रकार से यह सोच सही है. पर गलत इसलिए है क्योंकि बड़ी कंपनियों के लिए तो यह स्थिति घाटे की स्थिति पैदा करेगी, पर ऐसी स्थिति से बचने और अपना नुकसान कम करने के लिए जाहिर है वे अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ाएंगी. उत्पादों की कीमतें बढ़ाएंगे तो?…तो समझ सकते हैं कि आखिर में मारा जाता है एक आम आदमी.

भारतीय बाजार को किस प्रकार प्रभावित करेगा यह?

गिरता रुपया दो तरीके से अर्थव्यस्था को प्रभावित करता है:

(i) भारत की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह कृषि के अलावे ज्यादातर तकनीकी उत्पादों को बनाने के लिए उसके अलग-अलग पार्ट्स को विदेशों से मंगवाता है. जाहिर है कि अगर वे पार्ट्स महंगे हो रहे हैं तो उससे बनने वाली वस्तुएं भी महंगी हो जाएंगी. वस्तुएं महंगी हो जाएंगी तो उपभोक्ता यानि कि आम आदमी को भी उसी वस्तु को खरीदने के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे. अर्थात महंगाई बढ़ जाएगी और उपभोक्ता चीजें खरीदना कम कर देंगें. परिणाम यह होगा कि बनी हुई चीजें न बिकने के कारण वेंडर्स कंपनी से माल खरीदने बंद कर देंगे. वस्तुओं की मांग कम हो जाएगी तो उसे बनाने की मात्रा भी कम करनी पड़ेगी. इससे कंपनी का लाभ घटेगा. लाभ घटने से कंपनी वहां काम करने वाले कर्मचारियों, मजदूरों की छंटनी करने लगेगी. इससे बेरोजगारी बढ़ेगी और आम आदमियों की औसत आमदनी घटेगी. यह वापस उन्हें अपनी मूलभूत जरूरतों में कटौती करने को मजबूर करेगा. इस प्रकार चीजें कम बिकने से उसका प्रोडक्शन कम हो जाएगा और हर चीज महंगी हो जाएगी. अंतत: यह समूचे देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बुरी तरह नुकसान पहुंचाती है.

पिछले कई महीनों से महंगाई के प्रभाव से मंदी में चल रहा भारतीय मोटर उद्योग अब गाड़ियों की कीमतें बढ़ाने पर विचार रहा है. टोयोटा ने कहा है कि कुछ और दिनों तक रुपए की स्थिति पर नजर रखेगा. अगर सुधार के आसार नहीं दिखे तो मजबूरन कीमतें बढ़ानी पडेंगी. महंगाई की वजह से पहले ही गड़ियों की बिक्री में आई भारी कमी से मोटर कंपनियों के लाभ में कमी किया है. ऐसे में वे अगर कीमतें बढ़ाते हैं तो उनकी बिक्री और प्रभावित हो सकती है पर रुपये के अंतरराष्ट्रीय मूल्य में निरंतर गिरावट से विदेशों से पार्ट्स मंगवाना महंगा हो जाने के कारण गाड़ियों की लागत मूल्य में बढ़ोत्तरी हुई है. यह मोटर कंपनियों के लिए एक और घाटे की स्थिति है. अत: मजबूरन वह गाड़ियों का मूल्य बढ़ाने के लिए बाध्य हैं.

क्रमश:………


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