- 173 Posts
- 129 Comments
गतांक से आगे………..
पर्यटन होगा प्रभावित
गिरता रुपया सिर्फ तकनीक प्रधान उद्योगों को ही प्रभावित नहीं करता. देश की अर्थव्यवस्था में हर उद्यम, हर उद्योग एक-दूसरे से जुड़ा होता है. रुपए की यह गिरावट भी हर उद्योग को प्रभावित करती है. पिछले कुछ सालों से लाभ की स्थिति में फल-फूल रहा पर्यटन उद्योग भी इनमें से एक है. पर्यटन उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा कोष बढ़ाने का एक उपयोगी माध्यम है. इस पर भी रुपये के गिरने का दो तरफा असर है. एक तो विदेशी पर्यटकों को डॉलर के एक्सचेंज में रुपया ज्यादा जाता है, दूसरा बड़ा असर भारतीय पर्यटकों की विदेश यात्रा पर पड़ेगा. पर्यटन एजेंसी विदेश-यात्रा के सारे इंतजाम करती है. पर यहां भी डॉलर ही चलता है. डॉलर के मुकाबले रुपए की यह कमजोरी एजेंसियों को पहले की तुलना में अधिक मूल्य अदा करने की मजबूरी देती है. जाहिर है यह उनके लाभ को कम करेगा. इसकी भरपाई वह पर्यटकों से सेवा-शुल्क बढ़ाकर ही लेंगे. सेवा-शुल्क में बढ़ोत्तरी विदेश यात्रा को हतोत्साहित करेगा. इस तरह पर्यटन उद्योग में भी संकट की स्थिति उत्पन्न होती है.
विदेशी शिक्षा महंगी हो जाएगी
मार रुपए को पड़ रही है पर इसकी चोट विदेशी शिक्षा को भी है. भारत में उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने का चलन बहुत पुराना है. आज भी शिक्षा के लिए विदेश जाने का यह चलन जोरों पर है. शिक्षा के लिए ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोप जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या यहां ज्यादा है. रुपए की गिरावट भारत में विदेश-शिक्षा के इस रुझान पर बड़ा असर डालेगा क्योंकि अब समान शिक्षा के लिए पहले की तुलना 15 से 20 फीसदी ज्यादा खर्च करना पड़ेगा. इस तरह शिक्षा के लिए विदेश जाने का सपना देखने वाले विद्यार्थियों को यह रोकती है.
निवेश में कमी
भारतीय उद्योगों में विदेशी निवेशकों का रुझान कम होना भी इसका एक बड़ा असर होगा. रुपए का टूटना भारत में न केवल महंगाई बढ़ने का बड़ा कारण है बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के जर्जर होते हालात का भी परिचायक है. कोई भी निवेशक अपने निवेश पर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना चाहता है और निवेशकों के लिए लाभ की यह स्थिति तभी बन सकती है जब देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो. कोई भी निवेशक उस जगह अपनी पूंजी नहीं लगाना चाहेगा जहां पैसों की कमी और महंगाई बाजार की बीमारी बन गई हो.
निश्चित तौर पर पिछले कुछ वर्षों में विदेशी निवेशकों का रुझान भारत की तरफ बढ़ा था. पर इसकी एक बड़ी वजह यूरोप और अमेरिकी अर्थव्यवस्था की कमजोरी थी. अब जबकि डॉलर मजबूत होने के साथ ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था के हालात भी मजबूत हो रहे हैं, भारत इस समय रुपए की कमजोरी और महंगाई से जूझ रहा है. दिनोंदिन रुपए की बिगड़ रही हालत निवेशकों को भारतीय अर्थव्यवस्था के लचर हालात के संकेत भी दे रही है. निश्चित तौर पर ऐसी अर्थव्यवस्था में निवेश से लाभ के आसार निवेशकों को कम ही नजर आएंगे. ऐसे बाजार में जहां लोग अपनी मूलभूत जरूरतों में लगातार कटौती कर रहे हों, नई जरूरतों के लिए पैसा खर्च नहीं करेंगे. बाजार के इस रुख को देखते हुए नए निवेशक भारत में निवेश से दूर हो रहे हैं. पुराने निवेशक भी ज्यादा बुरे हालात देखने पर अपना निवेश कम कर सकते हैं या निवेश हटा भी सकते हैं. निवेशकों की कमी एक बार फिर उत्पादकता पर प्रभाव डालते हुए महंगाई और बढ़ाएगी.
आम उपभोक्ता वर्ग
रोटी कितनी भी महंगी हो, बोटी गरीब की ही चुसती है. महंगाई के ये हालात और रुपए की कमजोरी भी आम उपभोक्ता वर्ग को ही चूसने का काम करेगी. भारत आज भी तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर नहीं है. कंप्यूटर से लेकर टीवी-फ्रिज, कार-बाइक, ट्रैक्टर-साइकल या कैमरे से लेकर कोई भी मशीनरी सामान हम नहीं बना सकते. हर मशीनरी सामान के छोटे से छोटे कल पुर्जे भी विदेशों से आयात किए जाते हैं. हम बस इन्हें जोड़कर (एसेंबल) बेचते हैं. रुपए के गिरने से आयात शुल्क निश्चित तौर पर बढ़ेगा और अगर आयात शुल्क बढ़ा इनकी कीमतें भी बढ़ेंगी. कीमतें बढ़ने से इनकी बिक्री में भी कमी आएगी. इस तरह इलेक्ट्रॉनिक और मशीनरी सामानों की उत्पादकता कम कर दी जाएगी. परिणाम इनकी मूल्य वृद्धि और नौकरी में छंटनी के रूप में सामने आएगी. अंतत: इससे आम वर्ग ही प्रभावित होगा.
इस तरह रुपए की कमजोरी किसी न किसी रूप में आम उपभोक्ता वर्ग को ही चोट पहुंचाती है. महंगाई रोकने की लाख कोशिशों के बावजूद प्याज और सब्जियों के दाम जिस तेजी से बढ़े हैं, अन्य बाजार तो पहले ही आम वर्ग के हाथों से फिसला सा चल रहा है, ऐसे में रुपए की लगातार गिरती हालत राष्ट्रीय कोष के लिए नहीं आम जनता के लिए संकट और भी बढ़ाने वाली है.
rupee fall against us dollar
Read Comments