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‘सोने’ से अधिक सुरक्षित विकल्प तो दीजिए

अर्थ विमर्श
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investment in gold in hindiवो एक विज्ञापन आपने सुना होगा ‘घर में पड़ा हो सोना, फिर काहे का रोना’. कुछ ऐसा ही सोचता है हर भारतीय या हर भारतीय मिडिल क्लास परिवार तभी तो सोने की खपत में कमी लाने की वित्त मंत्रालय की भरसक कोशिशों के बावजूद हम उसकी सुन नहीं रहे. हमें लगता है कि सोने के सुनहरे रंग में हम अपना सुनहरा भविष्य सहेज रहे हैं. और ऐसा हो भी क्यों न. सरकार जिस चीज के लिए हमें मना कर रही है उसके एवज में कुछ भी तो ऐसा नहीं है जिसे खरीद कर या जिसमें अपनी गाढ़ी कमाई का निवेश कर हम अपना भविष्य सुरक्षित कर सकें. मई 2012 के अनुपात में मई 2013 में लगभग 90% ज्यादा सोने का आयात हुआ है. आप समझ ही सकते हैं कि वित्त मंत्री चिदंबरम को भले ही सोने के लिए भारत का प्यार एक समस्या का कारण लगे पर यह एक बीमारी है जिसकी हमें लत लग गई है.


वाणिज्य सचिव एस आर राव के शब्दों में “जहां तक ​​व्यापार घाटे का संबंध है, यह बहुत चिंता की बात है … इसमें काफी हद तक सोने और चांदी के भारी आयात ने योगदान दिया है”. पर उन्हें कोई तो समझाए की सोना से कीमती तो अभी पेट्रोल है जिसका आयात भी कम नहीं रुला रहा. मई 2013 में भारत में 15 बिलियन डॉलर का तेल आयात हुआ है. दोष तो हम किसी को नहीं दे सकते हैं पर हां, अगर समझदारी से एक का चुनाव किया जाए तो नुकसान कम होगा. तेल का उत्पादन हम अपने देश में कर नहीं सकते और इसके बिना भी हम जी नहीं सकते. तो क्या ये जरूरी नहीं कि सोने का आयात कम कर इसकी तुलना में तेल के आयात पर ही ज्यादा ध्यान दिया जाए क्योंकि वित्तीय घाटा कम करने में यह सोने से ज्यादा उपयोगी साबित हो सकता है.

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माननीय वित्त मंत्री कल्पना करने को कहते हैं (‘अगर कल्पना की जाय कि भारत एक साल तक सोने का आयात नहीं करता है तो देश की अर्थव्यवस्था का कायाकल्प ही हो जाएगा. अगर आप सोना ख़रीदना बंद नहीं कर सकते तो इसे कम मात्रा में खरीदें’). सरकार शायद सोती ज्यादा है इसलिए शायद उन्हें सपने देखना ज्यादा पसंद है. पर शायद उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि उनके सपनों का महल उनकी कमजोर आर्थिक नीति पर खरी नहीं उतर सकता. उन्हें कोई समझाए कि उनकी कोई भी योजना या पॉलिसी ‘ऊंट के मुंह में जीरा का छौंक’ की तरह काम करती है. आम आदमी अगर म्यूच्युअल फंड या किसी सरकारी बचत योजना में पैसा लगाता है तो उसका ब्याज दर सोने के बढ़ते दाम का मुकाबला नहीं कर सकता. यूं भी ऐसी योजनाओं में जो ब्याज दर आता है उसका स्वाद भी चखने के लिए सालों इंतजार करना पड़ता है. चलो एक बार को मान भी लिया जाए कि महानगरों में लोग सोने में पैसा निवेश न करें क्योंकि उनकी पहुंच बहुत सारे लाभदायक फंड तक होती है जिनकी उन्हें बेहतर जानकारी है पर छोटे शहरों या कम जानकार लोगों के लिए निवेश ‘सोना में निवेश’ निवेश का सबसे सुविधाजनक और लाभदायक रास्ता है. उन्हें नहीं मालूम कि ‘फाइनेंशियल रिस्क’ जैसी भी कोई चीज होती है और पता हो भी तो क्या! बार-बार निवेश करने के लिए उनके पास ढेर सारा पैसा नहीं है. साल भर में वे जो मुश्किल से बचाते हैं उनसे कोई ऐसी चीज (सोना) खरीद लेते हैं जिसकी कीमत भविष्य में कई गुनी हो और उनका यह विकल्प तर्कसंगत भी है.


हमारी सरकार न तो भारतीयों का सोने की प्रति लगाव कम कर पाने में सक्षम हो पा रही है, न ही अप्रवासी भारतीयों को यहां अपना पैसा जमा करने के लिए आकर्षित कर पा रही है. हम नहीं भूल सकते कि हमारे देश का ब्याज दर बहुत कम है. इसे दरकिनार भी कर दिया जाय तो भी भारतीय मूल का कोई विदेशी यहां पैसा जमा कर जोखिम ही उठाएग. वह यहां जितने पैसे लगाएगा, सालों बाद उसे ब्याज दर समेत जो रूपया मिलता है उससे कहीं ज्यादा डॉलर की कीमत यहां बढ़ जाती है. ऐसे में इतने साल बाद भी उस रुपए का मूल्य पुराने मूल्य जितना ही प्रतीत होता है.

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ये सच है कि लालच बुरी बला है और सोना तो ऐसी बला है जिसके लालच में कितने लोगों और देशों को लूटा गया है. पर यहां मामला थोड़ा अलग है जिसे सरकार समझने को तैयार नहीं है. यह ऐसा लालच है जो आम लोगों का भविष्य सुरक्षित कर रहा है. क्या सरकार के पास इससे बेहतर विकल्प उनके सुरक्षित और लाभकारी निवेश के लिए हो सकता है. अगर नहीं तो सरकार भी इस पर कभी जबरदस्ती अंकुश नहीं लगा सकती क्योंकि हर आम निवेशक को स्वतंत्र आर्थिक निर्णय लेने का अधिकार है. हां, सरकार आयात पर टैक्स का बोझ जरूर डाल सकती है जो उसके अधिकार क्षेत्र में है.

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